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तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,

स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।

गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी

धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक

शिव पंचाक्षर स्तोत्र

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,

जिनके here महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।

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